संसद की भाषा: फ्लोर टेस्ट, विश्वास प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव

संसद में अक्सर ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है जो आम लोगों के लिए थोड़े जटिल लग सकते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख शब्द हैं – फ्लोर टेस्ट, विश्वास प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव। आज हम जानेंगे संसद में प्रयुक्त होने वाले कुछ प्रमुख शब्दों के अर्थ को जिसमे शामिल है फ्लोर टेस्ट, विश्वास प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव, सबसे पहले जानते हैं फ्लोर टेस्ट के बारे में –

फ्लोर टेस्ट क्या होता है?

फ्लोर टेस्ट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से यह जांचा जाता है कि वर्तमान सरकार के पास बहुमत है या नहीं। जब किसी सरकार के बारे में संदेह होता है कि उसके पास बहुमत नहीं रहा तो फ्लोर टेस्ट कराया जाता है। फ्लोर टेस्ट में सरकार को यह साबित करना होता है कि उसके पास सदन में बहुमत है। अगर सरकार बहुमत साबित करने में नाकाम रहती है तो उसे इस्तीफा देना पड़ता है। जब लोकसभा में फ्लोर टेस्ट होता है, तब प्रधानमंत्री को इस फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित करना होता है। इस फ्लोर टेस्ट में अगर प्रधानमंत्री बहुमत साबित करने में अगर असफल होते हैं, तब इस स्थिति में प्रधानमंत्री को अपनें पद से इस्तीफा देना पड़ता है।

अब जानते हैं विश्वास और अविश्वास प्रस्ताव में क्या अंतर होता है ?

पहले जानते हैं विश्वास प्रस्ताव के बारे में – विश्वास प्रस्ताव सरकार की तरफ से लाया जाता है। इस प्रस्ताव के द्वारा सरकार यह साबित करती है कि उनके पास बहुमत है। विश्वास प्रस्ताव सदन में पेश होने के बाद इस पर चर्चा होती है और उसके बाद अंत में इस पर मतदान होता है, इस मतदान के द्वारा यह साबित होता है कि कितने सदस्य सरकार के पक्ष में है तथा कितने विपक्ष में। अगर वर्तमान सरकार के पास आधे से ज्यादा सदस्य सरकार के पक्ष में होते है तो सरकार को कोई खतरा नही होता है।

अब बात करते हैं अविश्वास प्रस्ताव के बारे में –

विश्वास प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव में क्या अंतर है?

विश्वास प्रस्ताव: यह प्रस्ताव सरकार खुद लाती है। इसके माध्यम से सरकार यह दिखाना चाहती है कि उसके पास बहुमत है और वह जनता का विश्वास जीतने में सक्षम है।

अविश्वास प्रस्ताव: यह प्रस्ताव विपक्षी दल लाते हैं। इसके माध्यम से विपक्ष सरकार को यह दिखाना चाहता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं रहा है और उसे इस्तीफा दे देना चाहिए।

अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की ओर से सरकार के खिलाफ लाया जाता है। इस प्रस्ताव को लाने से पहले विधायक या सांसद को विधानसभा या लोकसभा अध्यक्ष को लिखित सूचना देना होता है। अध्यक्ष से मंज़ूरी के पश्चात् अविश्वास प्रस्ताव पेश होता है। नोटिस मंज़ूर होने के 10 दिनों के अंदर सदन में इस पर बहस कराने और मत विभाजन कराने का प्रावधान है। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा पूरी होने के बाद लोकसभा या विधानसभा अध्यक्ष इस पर मत विभाजन, ध्वनिमत या मतपत्र के जरिए मतदान कराता है। आपको बता दें कि लोकसभा में नियम 198 के तहत अविश्वास प्रस्ताव लाने की व्यवस्था की गई है।

अब जानते है सदन में मतदान के प्रकारों के बारे में –

ध्वनिमत (Voice Vote) – इस पर विधायिका मौखिक रूप से अपनी प्रतिक्रिया देती है।

मत विभाजन (Division Vote) – मत विभाजन के मामले में, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, स्लिप्स या बैलेट बॉक्स का उपयोग करके मतदान होता है।

मतपत्र (Ballot Vote) – बैलेट बॉक्स एक गुप्त वोट होता है। इस प्रकार के वोटिंग में सांसद/विधायक गुप्त तरीके से मतदान करते हैं।

लोकतान्त्रिक देशों में फ्लोर टेस्ट, विश्वास प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव जैसे उपबंध होने ही चाहिए, इससे लोकतंत्र सुरक्षित होता है। ऐसे उपबंध सरकारों के तानाशाही रवैये को कमजोर करते हैं।

सदन में मतदान के प्रकार

संसद में विभिन्न मुद्दों पर मतदान होता है। मतदान के मुख्य रूप से तीन प्रकार होते हैं:

ध्वनिमत: इसमें सभी सदस्य एक साथ हां या ना में जवाब देते हैं।

मत विभाजन: इसमें सदस्य अपने मत को रिकॉर्ड करवाते हैं।

मतपत्र: इसमें गुप्त मतदान होता है।

क्यों महत्वपूर्ण हैं ये प्रक्रियाएं?

ये प्रक्रियाएं लोकतंत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। इनके माध्यम से:

सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित होती है।

सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह रहना पड़ता है।

विपक्ष को सरकार पर नजर रखने का मौका मिलता है।

लोकतंत्र मजबूत होता है।

निष्कर्ष

फ्लोर टेस्ट, विश्वास प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव जैसी संसदीय प्रक्रियाएं लोकतंत्र की रक्षा और मजबूती के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन प्रक्रियाओं के माध्यम से सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह रहना पड़ता है और विपक्ष को सरकार पर नजर रखने का मौका मिलता है।

मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।

 

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